That Lady At The Tube-well

कभी कभी हमारे जीवन में ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनपे हम खुद भी हैरान हो जाते हैं। ये घटनाएं अचानक ही होती हैं। क्यों, कैसे, किसलिए… इनका जवाब न तो हमारे पास होता है, और न ही हम खोज पाते हैं। ये बस हो जाती हैं। और होती भी ऐसे हैं, की सच, वास्तविकता और science के बनाये नियम, दूर दूर तक कहीं नज़र नहीं आते। हम ये सोचने लगते हैं की जो भी हुआ, या जो भी हमने देखा या सुना, उसमे कितना सच है? क्या जो हुआ वो एक छलावा था? आँखों का धोखा या फिर मन का वहम? वास्तविकता क्या है? इसकी परिभाषा क्या है? कौन है जो इसके नियमों को बनाता है? ये सवाल मेरे जेहन में कभी पहले नहीं आये। मैंने हमेशा से rational thinking और scientific approach के साथ अपनी जिंगदी जी.. until an incident changed my perception about life and reality.

आज बीस साल हो गए उस घटना को बीते हुए, पर जब भी सोचता हूँ तो महसूस होता है की कल ही की बात है। मैं उन गन्नों पे बिछी ओस की बूंदों को अभी भी महसूस करता हूँ, हवा में फैली उस भीनी मिट्टी की खुश्बू अभी भी मुझे तरोताज़ा कर देती है। और वो चेहरा… लकड़ी के गट्ठर की जलती आग की रोशनी में एक अलग ही चमक लिए वो चेहरा…

*

बीस साल पहले मैं army में Major की rank पे जोधपुर में posted था। December के महीने की ठण्ड अपना कमाल दिखा रही थी। दिन में मिली धूप, रात को आई ठण्ड के आगे सर झुका के घुटने टेक देती थी। पर हम फौजी थे। गर्मी पड़े या ठण्डी, हम हमेशा अपनी duty पे तैनात रहते थे।

दोपहर के 12:45 बजे थे। सूरज अपने पूरे जोश में था और सैनिक बल पुरे होश में अपनी daily duties कर रहे थे। मैं P.T. oversee कर रहा था जब एक सैनिक नें आकर खबर दी कि मेरे लिए Air Commodor भानू प्रताप का call है। यूँ तो वो मेरे पिताजी थे, but on duty, वो hamesha मेरे senior पहले और dad बाद में थे। तभी मेरे mobile पे call न करके उन्होंने मुझे office के number पे call किया था। मैंने उनका call recieve किया।

“Good afternoon Sir!”

“Major रुद्र… How is your day going?”, एक dominating, yet still caring आवाज़ में मेरे पिताजी नें मुझसे पूछा।

“Very good, Sir!”

“Exellent. Major रुद्र, तुम्हारे दादाजी की तबियत काफी ख़राब है। वो अपनी अंतिम साँसे ले रहे हैं। मैं चाहता हूँ तुम जितनी जल्दी हो सके मध्रुगढ के लिए निकलो। हम आपको वहीं मिलेंगे।”

मैं कुछ seconds के लिए चुप रहा। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पिताजी कभी on duty personal बातें नहीं करते तो फिर आज? और इन्हें कब से अपने पिताजी की चिंता होने लगी? आज के पहले, बल्कि जब से मुझे याद है, इन्होंने कभी उनका जिक्र नहीं किया। ” Yes Sir!”, पर इतना ही बोल पाया मैं।

“On duty now, मेजर।”, ये बोल कर उन्होंने फ़ोन काट दिया। मैं कुछ देर के लिया वही खड़ा रहा। पिताजी को यूँ अचानक घर जाने की याद कैसे आ गयी? अपनी desk की drawer से मैंने cigarette निकाली और पीने लगा। हर एक कश के साथ मेरे सवाल और भी बढ़ते जा रहे थे। ‘शायद इन्हें जायदाद चाहिए। सुना था मैंने एक बार इनको माँ से बात करते हुए, काफी बड़ी जायदाद है, और पिताजी के siblings भी नहीं हैं…नहीं नहीं….ऐसा नहीं होगा…पिताजी नें मुझे बचपन से ही self reliable and self dependent बनना सिखाया है। शायद कुछ और…aaargh! कुछ नहीं समझ आ रहा। ये दादा कहाँ से आ गया बीच में। मेरी cigarette खत्म हो गयी थी। पर सवाल अभी भी थे। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपना phone निकाला और पिताजी को call किया। तीसरी ring में फ़ोन उठाकर उन्होंने कहा, “हां बेटा!” इस बार उनकी आवाज़ में प्रेम था। क्योंकि अब वो किसी मेजर से नहीं अपने बेटे से बात कर रहे थे।

“पिताजी, हमें आपसे एक बात पूछनी है।”

“जानते हैं। यही ना, कि आज अचानक से हमें अपने पिताजी की याद कैसे आ गयी?” सब जानते थे वो, कब, क्या और कौन सा सवाल मेरे ज़ेहन में है।

“जी, पिताजी।”

“मरते हुए आदमी से कैसा बैर, रूद्र? हम जानते हैं की वो अब ज्यादा दिन नहीं जिएंगे। उनके आखिरी पलों में अगर उनकी आखिरी इच्छा पूरी नहीं हुई, तो शायद उनकी आत्मा यहीं भटके। और उनके जैसे लोगों की यहाँ जरुरत नहीं। न तो जीते हुए, न मरने के बाद। हम आपको बुलाना चाहते हैं, क्योंकि हम आपको उस आदमी से मिलाना चाहते हैं जिसके लिए कभी किसी के मन में प्यार नहीं होगा।”

“जैसा आप कहें पिताजी।” मैंने और ज्यादा न पूछते हुए फ़ोन रख दिया।

मेरे पिताजी हमेशा अपने पिताजी से नफरत करते रहे। और उनकी इसी नफरत की वजह से, मैंने भी कभी अपने दादा को इज़्ज़त नहीं दी। पिताजी कभी किसी से बैर नहीं रखते थे। हमनें शायद ही कभी उन्हें किसी से लड़ते या किसी के against grudge रखे देखा। कोई अगर कुछ बुरा करता भी था तो वि हमेशा उसे माफ़ कर देते थे। वो हमेशा कहते कि बैर भाव से कभी इंसान खुश नहीं रहता। मुझे याद है मैं काफी छोटा था। शायद इनके office में किसी नें कुछ गलत किया था। पर इन्होंने उसे इनके senior से बचाया था। तब मैंने इनको पहली बार ये कहते कहते सुना था की गलतियां इंसान से ही होती हैं। माँ नें तब पूछा था इनसे, कि ऐसा है तो ये अपने पिताजी को क्यों नहीं माफ़ करते। “इंसान गलतियां करता है, शैतान की तो ये फितरत होती है।” मैं भी ये समझते हुए ही बड़ा हुआ की मेरे दादा जरूर अव्वल दर्जे की कमीने रहे होंगे। शायद यही वजह थी कि मैं भी उनसे नफ़रत करते हुए बड़ा हुआ। अब जाने की तैयारी करनी थी। अपने गाँव, जहाँ मैं आज तक नहीं गया, जिसे मैंने बस पिताजी के मुँह से ही सुना था। ‘एक दो दिन में क्या हो जायेगा। Time-pass भी हो जायेगा।’, ये सोचते हुए मैं office से बहार आकर वापस P.T. oversee करने आ गया। मुझे नहीं पता था, कि ये दो दिन मेरी ज़िन्दगी जीने की मायने बदलने वाले थे।

*
अगली शाम जोधपुर से train पकड़ के मैं मध्रुगढ के लिए रवाना हुआ। हैरानी बस इस बात की थी की मुझे पता भी नहीं था की मध्रुगढ में railway station भी है। चौबीस घंटे की exhausting journey के बाद मैं मध्रुगढ के station पे था। Station किसी abandoned पड़ी सरकारी property की तरह थी। मैंने चारो तरफ देखा। December की ठण्ड और कोहरे नें सब कुछ ढका हुआ था। मुझे उतरे हुए दो minute ही हुए होंगे की ट्रेन नें horn दिया और चल पड़ी। अच्छा ही था। इस घटिया station पे रुकना भी कौन चाहेगा। पीठ पे बस एक backpack लिए मैं पास ही पड़ी एक बेंच पे बैठ गया। पिताजी को फ़ोन करके inform करना था, सो मैंने अपना फ़ोन निकाला, पर कोई signal नहीं आ रहा था। “Amazing…”, मैंने दांत भीजते हुए कहा। अब मुझे अकेले ही दादा के घर पहुचना था। मैं station के बहार आया। सामने ओस की एक चादर बिछी हुई थी। ठंडी हवा मुझे जैसे ये बताने की कोशिश कस्र रही थी कि जहाँ तू आया है, यहाँ सब इसी तरफ ही ठन्डे दिल के हैं, तो तू वापस चला जा परदेसी। I was also an army-man. मैंने एक मुस्कान के साथ बैग से अपना cigarette का डब्बा निकाला और एक cigarette जलायी। और उस पहले काश के धुएं को बहार छोड़ते हुए मैं आगे बढ़ा। थोड़ी ही दूर पे एक टाँगे वाला खड़ा था। मेरी किस्मत अच्छी थी…मैं जीत रहा था।
‘ये टंगे वाला भी किसी horror film के रामू काका की तरह ही है।’, मैंने उसे देखते हुए सोचा। वो एक छोटा सा आदमी था, जिसने अपने से double size की शॉल ओढ़ रही थी और बीड़ी जलाये एक TB के मरीज़ की तरह खांसे जा रहा था। उसकी हालात पे तरस से ज्यादा मुझे गुस्सा आ रहा था। मैं उसके पास गया और थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा, “चाचा… मध्रुगढ चलोगे क्या?” मेरी आवाज़ loud थी, तभी शायद वो चौंक के पलटा और बीड़ी उसके हाथ से गिर गयी। वो मुझे शायद डरा हुआ जान पड़ा। कांपती हुई आवाज़ में उसने मुझसे कहा, ” अरे बाबू साहब! आप तो जान ही ले लेते। ऐसे भी कोई चिल्लाता है क्या बाबूजी? चलेंगे मध्रुगढ। कहाँ जायेंगे बतायें।”
“राम प्रताप की कोठी पर।” मैंने चिढ़ी हुई आवाज़ में कहा।
” राम प्रताप जी कहिये बाबू साहब। करता धर्ता हैं वो यहाँ के।” उसने भी चिढ़ी हुई आवाज़ में वापस कहा।

“अच्छा ठीक है। चलो भी । कितना time लगेगा ?”, मैंने पूछा ।
“ज्यादा नहीं । बैठिये । उसने इशारा करते हुए कहा । मैंने अपनी सिगरेट बुझाई और उसके तांगे पे बैठ गया ।
“वैसे बाबू साहब आपको पहले कभी देखा नहीं । नए हो क्या ?”
“हाँ… पहली बार आया हूँ । उनका पोता हूँ ।” ये सुनते ही को झटके से पीछे पलटा और ख़ुशी से बोला, “अरे! भैया आप भानू जी के बेटे हो? अरे वाह! धन्य हो गया मैं तो आज। कब से यहीं से सवारी उठाता आया हूँ, पर कंही नहीं सोचे की आप भी बैठेंगे मेरे टाँगे पे। आप के पिताजी को बहुत घुमाए हैं हम उनके बचपन में । आज आप भी बैठ गए । कमाल हो गया ! आज जीवन धन्य हो गया ।” फिर क्या था। उसने ख़ुशी ख़ुशी घोड़े हांकते हुए टांगा आगे बढ़ाया ।

मेरी दूसरी सिगरेट मेरे मुह में थी। और वो मुह से गिर गयी because मैं सड़क के झटकों से उबार नहीं पा रहा था । सड़क पे घुप्प अँधेरा था पर उस आदमी को जैसे अँधेरे में देकने की आदत थी । वो बड़ी ही कुशलता से तांगा हांकते हुए वो आगे बढ़ रहा था।
“वैसे भैया आपके दादाजी बहुत बड़े आदमी हैं । काफी कुछ किये हैं वो मध्रुगढ़ के लिए।”, उसने एक salesman की तरह मेरे दादा की तारीफ करनी शुरू कर दी । “बिजली, पानी, सड़कें… बहुत कुछ… ”

“वो तो दिख रहा है । बिजली का खम्बा तक तो है नहीं, और इसे आप सड़क कहते हैं ? अगर कुम्भकर्ण को इसी सड़क पे आपके तांगे पे बैठा के घुमाया होता तो रावण को काफी आसानी होती । ” मैंने अपनी sarcastic tone में reply किया ।

“हा हा हा ! “, वो हंसा, फिर कहा, “भैया… ये तो कुछ भी नहीं है ! इतना तो हर जगह होता है।” मैंने cigarette का धुंआ उड़ाते हुए उसकी बात को ignore किया । धुंध अभी भी गहरी थी और रात के 9 बज चुके थे । फ़ोन में अभी भी कोई signal नहीं आ रहे थे । कुछ देर और झटके खाते हुए जब मुझसे और नहीं हुआ तो मैंने उससे पूछा, “और कितनी दूर है ?” “बस भैया पहुंच ही गए । आगे से बस दायें मुड़ के आ गए बस ।” मुझसे न हुआ। मैंने उसे वही रुकने को कहा औए वहां से उतर गया । उससे घर तक का रास्ता पूछ के मैंने उसे पैसे दिए, पर उसने शाप लगेगा कहके मन कर दिया और उलटी दिशा में चल दिया।

मैंने राहत की सांस ली । अब बस थोड़ी ही देर और थी । मैंने उसके बताये हुए रास्ते पे चलने लगा और पहले turn से right मुड़ गया । पर थोड़ी ही दूर चलके मुझे लगा की मैं गलत आ गया हूँ । आगे बस घाना कोहरा और जंगल था । “Shit !” मैंने कहा । लेकिन एक army-man होने के नाते ये भी अच्छा था । मैं अब खुद रास्ता ढूंढ़ते हुए आगे बढ़ गया । वैसे भी मुझे उस बुड्ढे से मिलने का कोई शौक नहीं था । ये जंगल मुझे ज्यादा अपने लग रहे थे । मैंने अपनी torch निकाली और घने कोहरे को चीरता हुआ मैं आगे बढ़ा । कुछ कदम ही चला था जब मैंने देखा की थोड़ी ही दूर पे एक आदमी आग जलाये मेरी तरफ पीठ करके बैठा था । मैंने थोड़ी रहत की सांस ली । ‘ये आदमी मुझे रास्ता बता सकता है ।’ सोचते हुए मैंने उसे आवाज़ लगायी, “सुनिए, भैया ?” उसने शायद सुना नहीं था । वो अभी अभी जंगलों की तरफ मुह करके बैठा था । “भैया जी!?!” मैंने फिर से उसे आवाज़ लगायी । इस बार वो मुड़ा और उसने बड़े ही surprised होकर मुझे देखा । वो कुछ 23 का रहा होगा । उसके चेरे पे अलग ही तेज था। कुछ देर के लोए वो मुझे देखता रहा फिर उसने एक हल्की सी smile दी । मैंने भी return में smile देकर उससे पूछा, “राम प्रताप का घर कहाँ पड़ेगा ?” वो अभी भी मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था। फिर अपने left hand से पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यहाँ से सीधा चलते जाइये।” मैंने उसके दिखाए हुए रास्ते पे चलना शुरू कर दिया। “अजीब हैं यार यहाँ के लोग।” मैं अपने आप से बातें करता हुआ आगे बढ़ गया। आगे फिर वही अँधेरा और छायी हुई धुंध मेरे साथ हो गयी। मैं गन्नो के खेत से होता हुआ , कच्ची पगडण्डी के सहारे आगे चलता जा रहा था। मैंने अपनी watch में time check किया। रात के 9:30 हो रहे थे। मैंने आगे नज़र डाली। उस घने अंदर और ऊपर से धुंध की उस परत के आगे एक झोपड़ी जैसी आकृति दिखी। उसकी बायीं तरफ bonfire किये एक और आकृति मुझे दिखी। मैंने अभी भी ठीक से देख नहीं पा रहा था। मैंने और आगे बढ़ा।
मैंने चारो तरफ नज़र डाली। जहाँ भी देखा, बस गन्ने के ही खेत दिखे। मिटटी की

भीनी महक अब मेरे नाक में दम कर रही थी। ‘बस अब और भटकना नहीं। अगर bonfire के पास बैठे इस आदमी ने मुझे ये बताया कि बुढ़ऊ की हवेली और दूर है, तो मैं यहीं बैठ जाऊंगा, वो भी पूरी रात के लिए।’, मैंने मन ही मन decide किया। उस बैठी हुई आकृति के पास मैंने कुछ कदम बढ़ाये, पर जो दिखा वो कुछ और ही था। वो एक औरत थी। इतनी रात को भी अकेले इतने घने खेतों के बीच आग जल के बैठी थी। India में तब भी villages में इतनी छूट नहीं थी कि रातों को अकेले निकला करें। मैंने काफी करीब आ चूका था आग के। वो एकटक आग की तरफ देखे जा रही थी। मैं थोड़ा हिचकिचाया चूंकि किसी इस गाँव की किसी लड़की से पहली बार टकराया था और मुझे नहीं पता था की वो कैसे जवाब देगी। देगी भी या शायद एक शहरी आदमी को देख के भाग ही जाए, क्या पता! मेरी cigarette खत्म हो चुकी थी। मैंने अपने फ़ोन में signal चेक किया। अभी भी कोई सिग्नल नहीं थे। मैंने उस झोपड़ी की तरफ नज़र डाली। एक उजड़ा हुआ tub-well था वो। Bonfire और मेरी torch की रौशनी में भी ये साफ़ दिख रहा था की वो कम से कम तीस साल पुराना था। इसके पहले की मैं उस वीरान पड़े tub-well से अपनी नज़र हटा के उस औरत की तरफ मुड़ता, एक आवाज़ मेरे पीछे से आई, “इतने जाड़े में वहां मत खड़े रहिये, यहाँ आग के पास आ जाएं, थोड़ी रहत मिलेगी।” मैं पीछे मुड़ा। वो लड़की अभी भी आग की ही तरफ देख रही थी। शायद मुझसे नज़र नहीं मिलाना चाहती थी। गाँव की लड़कियों में ये शर्म और बात का लहजा सहज ही बचपन से होता है। पर अब मेरे लिए काम आसान हो गया था। मैं अब आराम से आगे का रास्ता पूछ सकता था। मैंने अपना backpack नीचे रख और आग के पास नीचे बैठ गया। नीचे जमीन ठंडी थी, तो उसने चारपाई पे पड़ी एक बोरी मुझे दे दी, पर इशारा किया की मैं आग की दूसरी तरफ बैठूं। मैंने वैसे ही किया।

मैंने अपने cigarette के डब्बे से एक और सिगरेट निकाली और लाइटर से जल के पीने लगा। पहला कश छोड़ते ही जैसे मैंने उससे आगे का रास्ता पूछने के लिए मुंह खोल ही, कि उसपे नज़र पड़ी। उसकी उम्र शायद बीस साल की रही होगी। आग की रौशनी में अब शायद ध्यान से देखा। उसने शायद चुनरी लेहेंगा पहना हुआ था। पर हैरानी की बात ये थी की इतनी ठण्ड में भी उसने न कोई शाल या न कोई pullover पहना हुआ था। उसने चेहरे पे एक अजीब सी ही चमक थी। मैंने शायद ही इतनी सुन्दर लड़की गाँव में कहीं देखी थी। आग की रौशनी में उसकी आँख और भी चमक रही थी। उसे देख कर यकीन हो गया की जरूर इसका पति या पिता यहीं कहीं आस पास ही होंगे, वर्ना ऐसी सुन्दर लड़की को ऐसे रात में अकेले कौन छोड़ता है? उसे देख के एक अजीब सी ही feeling आ रही थी, जैसे की शायद कोई अपना घर का ही बैठा हुआ है। ये शायद इसलिए भी था, की मुझे कोई ढंग से sensible human की तरह बात करने वाल मिला था इस गाँव में। मैंने पूछा, “आप इतनी रात में अकेले यहाँ क्या कर रही हैं? आपको डर नहीं लगता?” वो अभी भी आग की ही तरफ देखे जा रही थी। “नहीं, हमारे मंगेतर यही पास में ही हैं। और हम अपने पिताजी का इंतज़ार कर रहे हैं। उनकी काफी समय से तबियत खराब थी, अपर अब वो सारी परेशानियों से दूर होने वाले हैं, फिर हम आज ये गांव छोड़ के जा रहे हैं।”, उसने बिना मुझे देखे जवाब दिया। मुझे अपने ऊपर थोड़ी शर्म आई। मैं गाँव में था, मुझे ऐसे सवाल गलती से भी नहीं पूछने चाहिए थे , क्या पता किसे क्या बुरा लग जाये। “चलिए ये तो काफी अच्छी बात है।”, मैंने अपनी गलती सुधरते हुए कहा। “अच्छा सुनिए मुझे जल्दी है। यहाँ आग के पास थोड़ी गर्मी देने के लिए शुक्रिया पर मैं और नहीं बैठ सकता। मुझे ठाकुर साब की हवेली जाना है। क्या आप मुझे यहाँ से रास्ता बता सकती है?” अब उसने पहली बार मुझे देखा। उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान छा गयी और उसने अपना दाहिना हाथ उठा के मुझे उसकी दाहिनी हाथ की सीध पे जाने के लिए इशारा किया। मैंने अपना bag-pack उठाया, cigarette फेंकी और उसे thanks बोल के आगे ही बढ़ा था की उसने पीछे से आवाज़ लगायी, “सुनिए…. ” मैं पीछे मुड़ा। वो अभी भी मुस्कुरा रही थी। “जी कहिये?” मैंने पूछा। बिना हिचकिचाते हुए उसने कहा, ” आपको ये सब यही पीना चाहिए, इससे आपकी सेहत ख़राब होगी। मेरे पिताजी की भी काफी ख़राब रहती है। अभी आपकी काफी जिंदगी बाकी है, तो सेहत के साथ रहिये… नमस्ते !” अपने हाथ जोड़कर उसने कहा। ‘What the hell! एक मदद कर दी तो क्या मतलब कोई भी यहाँ ज्ञान बाँट देता है यार।’ मुझे गुस्सा तो बहुत आ रही थी पर तब भी मुस्कुरा के मैंने अपना सर हिल दिया।

अब उसके बताये हुए रास्ते पे चलता हुआ मैं आगे बढ़ा। बस थोड़ी ही दूर पे मुझे घरों में जलती हुई रोशनियाँ दिखाई देने लगी। मैंने वहां एक आदमी को रोक कर हवेली का रास्ता पूछा तो उसने बताया की वो हवेली से ही आ रहा था। मेरे पिताजी ने उसे भेज था railway station पे जाके ये पता करने के लिए की मैं कहाँ तक पहोचा हूँ। मैंने रहत की सांस ली। उसने पूछा की मैं कहा से आ रहा हुँ, मैंने कहा की मैं जंगल के रास्ते से आया क्यूंकि मैं रास्ता भूल गया था। उसने मुझे थोड़ी देर के लिए घूरा और फिर आगे देखने लगा। ‘इस गांव में सब पागल है।’ मैंने सोचा। अपर यहाँ चमक थी। बिजली थी। सड़क थी और अभी भी थोड़ी चहल पहल थी। ‘तो बुढ़ऊ ने काफी काम करवाया है। ‘ मैंने मन ही मन कहा।

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हवेली मेरे सामने थी। और मैंने शायद ही ऐसी हवेली ऐसे किसी भी गांव में, अपनी पूरी life में नहीं देखी थी। ‘पिताजी सच में तो कहीं इसी के लिए नहीं आये यहाँ?’ मेरे मन में फिर से वही सवाल उमड़ा। हवेली को अभी भी दिवाली की तरह सजाया गया था। बाहर भी काफी भीड़ थी। सब शायद बुढऊ को देखने आये हुए थे। मेरे साथ वाला आदमी मुझे अंदर ले गया। मेरे पिताजी बहार ही खड़े थे। मुझे आता देख वो मेरी तरफ बढे। इसके पहले ही मैं कुछ बताता, उन्होंने कहा, “He is dead. And we are leaving tomorrow as soon as possible.” इतना कहके वो अंदर चले गए। I was still trying to take in what all he said जब पीछे से एक आवाज़ आई, “अरे! तुम तो भानू के बेटे हो न!” मैंने पीछे मुड़के देखा। एक बूढ़ी सी औरत मेरी तरफ बढ़ रही थी। ये शायद मेरे पिताजी को जानती थी। मेरे blank expressions को completely ignore करते हुए वो मुझे एकटक देखने लगी। उसकी मोतिया होती हुई आँखों में आँसू थे और चेहरे पे मुस्कान। “बिलकुल भानु पे गए हो। तुम्हारी उम्र में बिलकुल तुम्हारी तरह ही दीखता था। पहली बार आये हो हवेली में, वो भी ऐसे अशुभ मौके पे। भानु तो अब आता भी नहीं। पता नहीं अब क्या होगा!” इतना कहकर वो रोने लगीं। मुझे अभी भी समझ में नहीं आ रहा था की मै करू तो क्या? तभी मेरे पीछे से वही आदमी जिसके साथ मैं हवेली आया, बोल, “ये इस हवेली में बरसो से हैं, आपके पिताजी को इन्होने ही पाल पोसकर बड़ा किया है।” पर मेरा ध्यान अब बस कल की train पे था। ‘What a waste of my leaves.’ मैंने मन ही मन सोचा। बस अब कल यहाँ से निकलना था। मैंने उस बूढी औरत को एक fake sympathetic look देते हुए अंडर की तरफ बढ़ा उसने फिर कहा, ” बस अगर तुम्हारी बुआ आज होती तो तुम्हारे दादाजी को इतनी पीड़ा न होती मरते वक़्त। काफी तड़पे हैं वो अपनी दोंनो संतानो के लिए। भगवान् ऐसी मौत किसी को भी न दे।” मेरे कदम वही के वही रुक गए। मेरे सुना था वो मेरा दिल और दिमाग यकीन करने की पूरी कोशिोश कर रहा था पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। मेरी कोई बुआ भी थी या हैं, और ये बात मेरे पिताजी ने मुझे कभी नहीं बताई। तो क्या पिताजी के साथ वो अपनी बहन से भी नफरत करते थे? या फिर मेरी बुआ उनसे नफरत करती थी क्यूंकि मेरे पिताजी ने उनके पिताजी को कंही नहीं अपनाया? उस औरत से इस नए angle के बारे में और information लेने के purpose से मैं पीछे मुड़ा। वो हवेली की छत को support करते हुए एक विशाल pillar के नीचे बैठी हुई, अभी भी रो रही थी। मैंने अपना बैकपैक साइड में रखा और और उनसे उनके सामने बैठकर, एक बच्चे की तरह पूछा, “मेरी बुआ कौन थी?” उस औरत ने मुझे हैरानी वाली नज़र से देखा और कहा, “हे भगवान्! भानू ने तुम्हे तुम्हारी बुआ के बारे में कुछ नहीं बताया। उस बेचारे ने अपने पिताजी से लड़ाई में अपना दिल इतना कठोर बना लिया कि जिस बहन से वो इतना प्यार करता था… ये सब….. हे राम….! ” वो और कुछ न कह पायी। पर उसने अभी भी कुछ नहीं बताया था मुझे। मेरे मन में सवालों ने बवंडर मच रख था। मैं अभी रुक नहीं सकता था। मैंने उस औरत को फिर से झकझोरा, “काकी…” मैंने बोला, “मुझे बताईये। Please बताईये।” पर उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। अब बस एक ही रास्ता था। मैं तेज़ी से पीछे मुड़ा और अपने पिताजी को ढूंढने लगा. किसी ने बताया की accountants और वकीलों के साथ बिजी थे। But मैं अब और इंतज़ार नहीं कर सकता था। मैं पिताजी के room में गया। Had it been a different situation, मैं उन्हें कभी disturb नहीं करता। पर इस बार बात कुछ और थी। मैं सीधा अंदर गया और उन्हें बहार आने को कहा। मेरी serious tone को वो पहचान गए थे और बहार आये। मैंने एक ही सांस में सवाल पूछा, “आपके पिताजी का समझ में आता है, पर मेरी बुआ भी है, ये बात आपने क्यों कभी नहीं बताई मुझे?” उनका चेहरा blank हो जायेगा ये मुझे पता था। For the first time in my life, he was struggling for words. पर army-man थे वो, अपने आप को सँभालते हुए बोले, “क्या जानना चाहते हो? क्या समझना चाहते हो? हां, थी हमारी एक बहन…भानुमती .. ” वो थोड़ा हिचकिचाए, अपना गाला साफ़ किया और फिर बोले, “पर हमारे बाप ने वो भी छीन ली हमसे। बस इतना काफी है तुम्हारे लिए रूद्र। बस ऐसा समझ लो कि ये जो नफरत है हमारी अपने बाप के लिए, बस इसी लिए की उस आदमी ने मेरी बहन मुझसे छीनी है। एक पूरी ज़िन्दगी…रूद्र… हमने एक पूरी ज़िन्दगी उस दर्द और खालीपन को जिया है। Now if you propose that I have to walk the same path again, then sorry, that is not going to happen. Take rest now, will see you in the morning.” और वो फिर अंदर चले गए। मुझे पता था की अब मैं चाहे कितना भी बोलूं, ये अब मुझे कुछ भी नहीं बताने वाले। पर अब तो मुझे ये जाने बिना चैन नहीं मिल रहा था कि आखिर ऐसा हुआ क्या था।

अब एक ही था। वो औरत। मैं दोबारा उस औरत के पास गया। वो उसी pillar के सहारे बैठी हुई थी। उन्होंने मुझे आते हुए देख लिया था। मेरे चेहरे पे सवालों के जाल शायद उन्हें दिख गए थे। या शायद वो समझ गईं की मैं क्या पूछना चाहता हूँ। समझती भी कैसे नहीं, मेरे पिताजी को जो बडा किया है उन्होंने। उन्होंने मुझे अपने नज़दीक बैठने कहा। मैंने बैठते ही पूछा, “पिताजी से कुछ पूछ के उनके पुराने घाव नहीं खुदेरना चाहता, आप ही कुछ बताये दादी-काकी।” मैंने कहा। उन्होंने मुझे बड़े ही दयनीय और उदास भाव से देखा। एक लम्बी सांस ली और अपने धीरे और वृद्ध स्वर में कहा, ” भानू नने ने गलत ही क्या कहा रूद्र। उस बेचारे ने तो अपने जीवन की सबसे कीमती चीज़ खोयी थी। पर ऐसा नहीं है सिर्फ उसी ने कुछ खोया था। एक बाप ने अपनी संतानें खोयी थीं, एक बहन ने अपना भाई, और एक लड़की ने अपना प्यार।” “प्यार?, मैंने बीच टोकते हुए पूछा। “हाँ बेटे। पर पहले तुम्हे तुम्हारी बुआ के बारे में बताते हैं। तुम्हारी बुआ पूरी तरह से तुम्हारी दादी की तरह दिखती थीं। वो तुम्हारी बुआ को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं। तुम्हारे दादाजी ने दोनों का नाम भानू और भानुमति रख था। पर तुम्हारे दादाजी उसे प्यार से डब्बी बुलाते थे। और तुम्हारे पिताजी को डब्बू। कभी ये देख के लगा नहीं की भाई बहनों में तीन साल का फर्क था। धीरे धीरे मद्रगढ के हर घर में इन्ही दोनों का जिक्र होने लगा। सब इन भाई बहन के प्यार की मिसालें देते थे। वो समय ही कुछ और था। भानू अपने पिताजी पे जान छिड़कता था। ऐसा कोई भी कहना नहीं जो तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे दादाजी का टाला हो। पूरा परिवार ख़ुशी से रहता था। भानुमति तो सबकी आँखों का तारा थी। औार हर बाप भानू जैसा ही बेटा चाहता था। फिर समय बदला। तुम्हारे दादाजी चाहते थे की भानू गाँव की बागडोर सम्भल ले, और खेती करे। पर तुम्हारे पिताजी फ़ौज में जाना चाहते थे। तब शायद पहली बार तुम्हारे पिताजी और दादाजी में किसी बात को लेके अनबन हुई थी। ऐसा नहीं था की भानू तब भी तुम्हारे दादाजी से प्यार नहीं करते थे। पर भानू का मानना था की जिंदगी में किसी को क्या करना है ये फैसला उसका खुद का होना चाहिए। तुम्हारे दादाजी को लगा की अगर भानू फौज में चला गया तो वो अपना एकलौता बीटा खो देंगे। और उसी डर को उन्होंने गुस्से में बदल कर अपने भानू को परिवार या ज़िन्दगी चुनने के लिए कहा। पर तुम्हारे पिताजी भी काम अड़ियल नहीं थे। स्वाभिमान और गुस्से में वो पूरे अपने पिता पे गए थे। वो गए तो घर छोड़ कर, पर भानुमति के लाख मनाने पर दोनों के बीच में सुलह हो गयी थी। पर उसके बाद जो हुआ, वो न तो हमने सोचा था, न ही गांव में तब किसी ने।” “ऐसा क्या हुआ था दादी -काकी?” मैंने पूछा। “कन्हैयां। तुम्हारे दादाजी के लिए मुनीमगिरी करता था। बड़ा ही भला इंसान था वो। तुम्हारे पिताजी का बचपन का दोस्त, और तुम्हारे दादाजी की भरोसे की परिभाषा। ये बात तब की है जब तुम्हारे पिताजी की शादी होने वाली थी। तुम्हारे दादाजी ने पास ही लखनऊ के एक बड़े ही घराने में भानू की शादी पक्की की थी। तुम्हारे दादाजी भानुमति की भी शादी करवाना चाहते थे। जब तुम्हारे पिताजी की शादी हो गयी, एक दिन, तुम्हारी बुआ की शादी की बात चली। पर तुम्हारी बुआ को कन्हैया से प्यार था, शायद बचपन से। और तुम्हारे पिताजी ये बात अच्छे से जानते थे। उन्हें इस बात से कोई तकलीफ नहीं थी क्यूंकि कन्हैया उनका बचपन का दोस्त था और तीनो साथ ही बड़े हुए थे। भानू को लगा की वो तुम्हारे दादाजी को समझा लेंगे, पर तुम्हारे दादाजी ने पहले ही कहीं उनका रिश्ता पक्का कर दिया था, वो खैरना गांव के ठाकुर के बेटे से। और तुम्हारे दादाजी अपने वचन के पक्के थे। हुआ वही जिसका डर था। भानू को जब ये पता चला तो उसने अपने पिताजी से इस बात पे काफी बहस की। वो इस बात से गुस्सा था की तुम्हारे दादाजी ने बिना भानुमति की मर्ज़ी जाने उसकी शादी कही और पक्की करा दी। तुम्हारे पिताजी ने कहा की जब उनकी मर्ज़ी पूछी गयी थी उनकी शादी के लिए तो फिर उनकी बहन की क्यों नहीं? पर तुम्हारे दादाजी तस से मस नहीं हुए। मामला और गम्भीर हो गया जब तुम्हारे दादाजी को कन्हैया और भानुमति के बारे में पता चला। उस दिन इस गाँव ने तुम्हारे दादाजी और तुम्हारे पिताजी, दोनों को इतने गुस्से में देखा था की अगर शंकर भी आ जाते तो शायद उनके गुस्से की बरकरी न कर पाते। पर हुआ वही जो तुम्हारे दादाजी चाहते थे। और ये हुआ तुम्हारी बुआ के कारण। जब तुम्हारे पिताजी ने अपनी बहन और कन्हैया को साथ ले जाने की बात की, तो भानुमति खुद बीच में आकर अपने भाई को ऐसा करने से मन कर दिया। वो किसी भी हालात के अपने पिताजी की मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी। वही पल था जब भानू वो लड़ाई हार चूका था। उसने गुस्से में अपने पिताजी से ये कहकर सम्बन्ध तोड़ लिए की वो इंसान नहीं एक हैवान है जो अपने रुतबे और झूटी शान के लिए अपने बच्चों का भी घर बर्बाद कर दिया। वो शायद आखिरी बार था, जब तीनों साथ में दिखे थे।

बात उसके अगले दिन की है। पिछले दिन की हुई घटनाओं ने तुम्हारे दादाजी को काफी परेशान कर दिया था। उनका एकलौता बेटा आज उनसे नफरत करने लगा था। उनकी एक ही बेटी थी, जो निचले दर्जे के एक लड़के से प्यार करती थी।
मुझे अच्छे से याद है, तुम्हारे दादाजी ने गुस्से में आकर कन्हैया को गोली मारने का मन बन लिया था। पर तुम्हारी बुआ ने उन्हें कसम दी की वो कभी कन्हैया को देखेगी भी नहीं और जब तक तुम्हारे दादाजी ज़िंदा हैं, वो कन्हैया का नाम तक नहीं लेगी। तुम्हारे दादाजी जैसे भी थे, पर अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने कन्हैया को हवेली में बुलाया और कसम दी की दोबारा मध्रुगरह में न दिखे। कन्हैया था तो निचली जात का, पर एक बहुत ही अच्छा इंसान था। इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारे दादाजी के लिए वफादार था। उसने तुम्हारे दादाजी को कसम दी की जब तक तुम्हारे दादाजी ज़िंदा हैं, वो कभी लौट के इस गांव में नहीं आएगा। तुम्हारे दादाजी ने कन्हैया को तुरंत गांव छोड़ने के लिए कहा। भानुमती चाहती थी की आखिरी बार वो कन्हैया को गाँव के बहार छोड़ के आये। तुम्हारे दादाजी ने सिर्फ अपनी बेटी के लिए ऐसा करने दिया। बस वो आखिरी बार था जब भानुमती और कन्हैया को किसी ने देखा था।”
“Ohh ! तो क्या वो भाग गए?” बीच में ही रोक कर पूछा। ‘यही हुआ होगा। बुआ कहनैय के साथ कहीं भाग गयी होंगी और पिताजी को ये लगता है ऐसा बुढऊ के वजह से हुआ है, तभी वो उनसे नाराज़ हैं।’, मैंने सोचा। पर मेरा ये guess गलत निकला।

“नहीं। भानुमति और कन्हैया, ये दोनों ही तुम्हारे दादाजी की काफी इज़्ज़त करते थे। वो भागे नहीं।”
“तो फिर क्या बुआ वापस आई?” मैंने curious हो के पूछा।
उन्होंने मुझे कुछ seconds देखा और फिर एक पीड़ा भरी आवाज़ में कहा, ” शिवेंद्र प्रताप, जिस लड़के से तुम्हारी बुआ की शादी पक्की हुई थी, वो भानुमति के जाने के एक घंटे बाद अपने साथियों के साथ आया और तुम्हारे दादाजी को ये खबर दी की भानुमति कन्हैया के साथं भाग गयी। ये खबर सुन कर तुम्हारे दादाजी को काफी झटका मिला। पहले ही एक लड़का उन्हें छोड़ के जा जुका था और अब ये…पर जब ये खबर तुम्हारे पिताजी को पता चली, वो वापस आये। उन्हें शिवेंद्र बिलकुल,भी पसंद नहीं था। और न ही उन्हें उसकी बाटों पे यकीन था। तुम्हारे पिताजी ने कहा की अगर उन्हें भागना ही होता तो वो उन्ही के साथ चले आते। तुम्हारे दादाजी कोई भी प्रतिक्रिया देने की हालत में नहीं थे। भानू ने साडई ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेली। उसने अपना पूरा समय अपनी बहन को ढूंढने में लगा दिया। हफ़्तों की म्हणत के बाद, शिवेंद्र के ही एक आदमी तुम्हारे पिताजी के पास आया। वो बदहवासी की हालत में था और काफी बहकी बातें कह रहा था। उसने तुम्हारे पिताजी को बताया की उसे रातों में नीड नहीं आती। उसे पछतावा था, पर जो हुआ उसमे उसका कोई हाथ नहीं था। तुम्हारे पिताजी ने जब उसे अच्छे से झकझोरा तब खबर सामने आई की उस दिन, शिवेंद्र ने बहनुमति और कन्हैया को साथ में गांव के किनारे पर देख लिया था। शिवेंद्र काफी गरम दिमाग का था। उसकी लगा की भानुमति कन्हैया के साथ भागने का सोच रही है। उसने उन दोनों को वही मार दिया। पर उसके तुरंत बाद जब उसका दिमाग शांत हुआ तो उसे अपनी करनी का दृश्य दिखा। अपनी जान बचने के लिए उसने कन्हैया को गंगा के तेज़ बहाव में फेंक दिया और भानुमति के शरीर को हमारे ही tub-well में दफना दिया। पर उसे भी सजा मिली। कुछ समय बाद वो मर मिले, अपने दोस्त के घर में। ”

मैंने सुन रहा था। एक एक चीज़ सुन रहा था। पर मैं वहां था नहीं। मेरा दिमाग कल्पना की दुनिया में ये सब imagine करता हुआ देख रहा था। एक बेटे को सब कुछ हारते हुए देख रहा था। एक लड़की को अपने प्यार से दूर जाते हुए देख रहा था। अब मैं, अपने पिताजी के दर्द को और महसूस कर रहा था। मैं अपने पिताजी की ककि को देखे जा रहा था, ये सोचे बिना की कब मेरी आँखों में आंसू भी आ गए। इतना सब कुछ देखा है मेरे पिताजी ने इस घर में।
काकी ने आगे कहा, “बस रूद्र। तुम्हारे पिताजी ने जब वो tub-well खुदवाया तो एक पूरा पहर, अपनी प्यारी सी, मृत भानुमति के आधे गले शरीर को अपने सीने से लगा के रट रहे। तुम्हारे दादाजी को तो जैसे लकवा मार गया था। पर उस दिन जो इस गांव ने भानू प्रताप को बदलते देखा, वैसे बदलाव फिर कभी नहीं आया। उनसे अपने पिता को, जिनके लिए वो अपने प्राण तक दे सकता था कभी, अपनी ही बेटी की लाश देखनी तक नहीं नसीब की। भानुमति का डाह संस्कार तुम्हारे पिताजी ने खुद लिया, और उसमे भी, तुम्हारे दादाजी को सम्मिलित नहीं होने दिया। मुझे अच्छे से याद है, तुम्हारे पिताजी ने जाने से पहले अपने पिता से कहा था की उनकी दोनों संतानें मर चुकी हैं, की वो उन्हें खुद कमलोिए माफ़ कर सकते हैं, पर अपनी बहन के लिए नहीं कर सकते। उनकी झूटी शान और इज़्ज़त की बधाई देते हुए, वो ये कसम खा के गए थे की अब उनके मरने की बाद ही इस घर में कदम रखेंगे, वो भी बस उनके अंतिम संस्कार के लिए।” अंगने एक लमि सांस ली, “बस रूद्र बेटे… यही है दुःख भरी कहानी। बहुत गलत हुआ…. एक परिवार जो पुरे गांव की मिसाल बन गया था, आज ऐसे होगा…. ” इतना कह के वो रोने लगी। पर इस बार कुछ अलग था। इस बार मैंने उसे झूटी sympathy नहीं दी। इस बार मेरे दिल में दर्द हुआ था। इस बार मेरा गला रुंधा हुआ है। मैं शोक में तो था, पर बुढऊ के लिए नहीं, अपनी बुआ के लिए, उनके बलिदान के लिए, अपने पिताजी के दर्द के लिए। तभी मैंने फैसला किया। मैंने काकी से पूछा , “दादी-काकी… मुझे अपनी बुआ को देखना है… अभी।”
उन्होंने मुझे मुस्कुराते हुए देखा, अपने आंसूं पोछे और मुझे अपने साथ हवेली में ले गयी। २ आँगन पार करके वो मुझे एक बड़े से hall में ले गईं। हाल के घुसते ही सामने एक काफी बड़ा family portrait टेंगा हुआ था। काकी ने hall की lights जलाई और अब मैं देख सकता था। ये मेरे पिताजी का घर, उनका बचपन, उनका दर्द…
“रूद्र बेटे, ये देखो, तुम्हारी बुआ…. ” काकी ने आवाज़ लगायी। मैंने उनकी दिखाई हुई तर्जनी उंगलि पे अपनी नज़र डाली।
मैं अपनी ज़िन्दगी के बस दो बार डरा किसी सचीज को देख कर एक डर और goosebumps का अनुभव किया है। पहली बार , जब मैं करगिल में था, और दूसरी बार अब, जब मैंने एक एक ऐसी लड़की की फोटो देखी जो, मेरी बुआ है, जो बहुत खूबसूरत हैं, और जिनसे मैं अभी थोड़ी देर पहले उस उजड़े tubwell पे face to face मिल चूका हूँ। मेरी एक खासियत है, मैंने चेहरे कभी नहीं भूलता। और ऐसा चेहरा मैं कभी नहीं भूल सकता था। इतनी ठण्ड में शायद पहली बार मेरे माथे पे इतना पसीना था। My mind went numb. काकी कुछ कह रही थी, पर मेरे कान भी सुन्न हो गए थे। उस portrait में चार चेहरों में से एक और चेहरा था जो मैंने कहीं देखा हुआ था। मैंने काकी को आवाज़ लगायी और कुछ न समझा पाने से, अपनी index finger से उस चेहरे की तरफ इशारा किया। काकी ने उस चेहरे को देख के कहा, “अरे! यही तो है कन्हैया!”
My mind was officially going tsunami. ‘How can that be possible?’, मैंने सोचा,’ दो लोग जो मेरे पैदा होने के पहले ही मर चुके है, मैंने उन्हें न सिफर ज़िंदा देखा है, बल्कि उनसे बात भी की है।’ Suddenly, everything started making sense. मेरी बुआ ने अपने पिता को कसम दी थी जब तक वो ज़िंदा हैं, बुआ कभी भी कन्हैया से मिलेगी और कन्हैया ने कसम खायी थी की जब तक उसके मालिक जिन्दा हैं, वो गांव में कदम नहीं रखेगा। ‘Such things really happens , or its just my tiredness?’, मैंने सोचा। एक ही तरीका था।

मैंने अपना बैग वही पटका और पूरी फ़ुर्ति के साथ वापस उसी पगडण्डी के सहारे तुबवेल्ल के पास गया। मैं समझ गया था की ये वही न्तुब्वेल्ल है, जिसमे बुआ को दफनाया था। अब ये धुंध और अँधेरा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। धुंध को चीरता हुआ, मैं चाहता था, पहली बार दिल से चाहता था की कोई और लड़की वहां बैठी हो, पर वहां कोई नहीं था। न कोई आग और न आग की कोई निशानी। न कोई चारपाई और ना ही कोई बोरी। ठंडी हवा मेरी नाक में घुस रही थी, पर मुझे परवाह नहीं थी। मुझे अभी और आगे जाना था। मैं फिर बिना रुके, अपनी टोर्च की रौशनी से सहारे, वापस उसी रास्ते की तरफ दौड़ा, जहाँ से मैं अंदर आया था। पर अंत में पहुंचने पर भी कुछ नहीं था। सिर्फ घुप्प अँधेरा और धुंध। मैंने आप पास आग के निशान देखे पर ऐसा लगा जैसे इस जगह पे पिछले कई दिनों नहीं जल होगा।
हताश और निराश मैं वापस जंगल की तरफ मुड़ा। मेरे हाथ कुछ नहीं लगा। मैंने अपनी सिगरेट निकाली और मुंह में डाली ही थी की then it clicked. उस लड़की ने कहा था की उसके मंगेतर गांव के बहार उसका इंतज़ार कर रहे हैं, और उसके पिता काफी समय से बीमार थे, पर अब ठीक होक उसके साथ गांव से दूर जा रहे थे। ठीक होने से उसके मतलब था की सभी दुःख से निवारण, और वो तभी possible है agar आदमी अपना शरीर त्याग दे। मैं रुका, मुस्कुराया, सिगरेट अभी भी जली नहीं थी। मैंने सिगरेट मुंह से निकल के फेक दी। अब कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ने वाली थी। वैसे भी मैं अपनी बुआ की एक मात्र request मन कैसे कर सकता हूँ।
अब मुझे डर नहीं लग रहा था। मिटटी की भीनी खुशबू, और ओस अब मुझे एक अजीब सा सुख दे रहे थे। मैं खुश था। I crossed that tube well again. एक second के लिए मैं रुक। पर अगले ही पल मैं वापस अपने रासए हवेली की तरफ चलने लगा। ‘She is free now . They all are.’ मैंने सोचा हवेली में जब मैंने अपने पिताजी को देखा तो tempt हुआ उन्हें ये सब बताने के लिए। पर ऐसा करके मैं उन्हें यादों के ऐसे दलदल में ले जाता, जिससे निकलने के लिए उनकी पूरी एक ज़िन्दगी चली गयी। वे अपने पिताजी को कभी माफ़ तो नहीं करेंगे, और ये अपनी जगह पे सही भी हैं। मैं अपने दादाजी को माफ़ करूँगा… वैसे देखा जाये तो I am not in a position to decide. मै तो उन्हें जानता भी नहीं था। बस एक विरासत में मिली हुई उनके लिए नफरत ही थी जो बहार आ रही थी।

मैं वापस hall में गया। मैंने उस फोटो को एक बार फिर ढयतां देखा, मुस्कुराते हुए। अब कोई दुःख नहीं था। एक बरसो पुरानी नफरत का हर तरीके से अंत हुआ था आज। मैंने राहत जी शान की,
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इतने साले बाद भी अगर इसपे डफर से बात की जाये तोह शायद जो मैंने देखा उसे एक co-incidence भी बता सकते हैं। या फिर ये की मैंने hallucinate किया था as was tired, पर मुझे अपनी आँखों देखि पे ही भरोसा है। क्यूंकि मैं ये मानना चाहता हूँ की एक लड़की ने अपने पिता के मान के लिए अपना प्यार कुर्बान किया। एक नौकर ने अपने मालिक के लिए अपना घर और गाँव छोड़ा। यहाँ तक की मरने के बाद भी एक दूसरे का सालों तक अपने वचन की मर्यादा में रखकर, इंतज़ार करते रहे। मैं मानना चाहता हूँ की मेरे दादाजी के वर्षों के पश्चाताप ने finally उन्हें अपनी बेटी, और मेरे through अपने बेटे से दोबारा मिलवा दिया था। Yes ….this is what I want to believe…that lady I met at tube well…changed my life.

5 thoughts on “That Lady At The Tube-well

  1. amazing story…. will hold u till the very end. combo of scary n emotional twists. brilliantly told. keep it up

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  2. Such a thriller! For a moment it seemed as if the story was going nowhere but then came the sucker punch in the end which laid all my doubts to rest. Such enthralling piece of work has left me amazed. I’m also left wanting for more. Keep ’em coming Manish!

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